विजय सड़क के किनारे खड़ा था, उसकी गर्दन में लटका निकॉन कैमरा हिला नहीं, जैसे उसका पूरा अस्तित्व उस बंदर की दर्द भरी आंखों में उलझ गया हो। बंदर की आँखें जैसे उसकी आत्मा से बातें कर रही थीं, आज़ादी के लिए एक ऐसी गुहार, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। विजय जानता था कि वह इस बार चुपचाप नहीं जा सकता। उस बंदर के दुःख ने उसे झकझोर दिया था और वह कुछ करने का संकल्प ले चुका था।
हिम्मत जुटाकर विजय मदारी के पास गया। उसकी आवाज़ शांत थी, लेकिन दिल तेजी से धड़क रहा था।
“भाई,” विजय ने धीरे से कहा, “इन बंदरों से तुम्हें कितना कमा लेते हो?”
मदारी ने उसे संदेह से देखा, लेकिन जवाब दिया, “इतना कि पेट भर सके, और इनका भी।”
विजय ने सिर हिलाया, अपनी नाराज़गी को छुपाने की कोशिश करते हुए। उसने गहरी सांस ली और कहा, “अगर मैं तुम्हें इस बंदर को छोड़ने के लिए पैसा दूं, तो क्या तुम मानोगे?”
मदारी रुका, उसके माथे पर शिकन आ गई। “साहब, यही तो मेरा गुज़ारा है। इनके बिना मैं कुछ नहीं हूं।”
विजय ने उसकी स्थिति को समझते हुए अपना लहजा नरम किया। “मैं तुम्हें सिर्फ बंदर के लिए पैसा नहीं दूंगा, बल्कि तुम्हें ऐसा काम खोजने में मदद करूंगा जिससे तुम्हारा गुज़ारा भी चलता रहे। चलो, मैं तुम्हें उन संगठनों से जोड़ता हूं जो तुम्हें नई शुरुआत के लिए ट्रेनिंग या साधन दे सकते हैं।”
मदारी ने बंदर को देखा और फिर विजय को। काफी देर तक चुप रहने के बाद उसने आखिरकार सिर हिला दिया।
विजय ने उसे एक अच्छी रकम दी, इतनी कि वह कुछ समय तक भूखा न रहे। अब रस्सी उसके हाथ में थी। विजय बंदर के पास झुका और उसकी डरी हुई नजरों से नजरें मिलाईं। बंदर थोड़ा पीछे हटा, लेकिन उसने कोई विरोध नहीं किया। विजय का दिल यह सोचकर भर आया कि इस मासूम प्राणी को इंसानों पर कितना कम भरोसा बचा है।
उस शाम विजय उस बंदर को एक वाइल्डलाइफ रेस्क्यू सेंटर ले गया, जिसके बारे में उसने पहले से जानकारी जुटाई थी। वहां के देखभाल करने वालों ने उस छोटे जीव का खुले दिल से स्वागत किया और वादा किया कि उसे रिहैबिलिटेट कर एक ऐसी जगह भेजा जाएगा जहां वह आज़ादी से रह सके।
जैसे ही विजय सेंटर से बाहर निकला, उसके मन में एक सुकून सा आ गया। वह जानता था कि यह बस शुरुआत थी। उस रात उसने अपना लैपटॉप खोला और “रस्सी से परे आज़ादी” नाम का एक ब्लॉग पोस्ट लिखना शुरू किया। उसने उसमें बंदर की कहानी, अपनी तस्वीरें, और अपने पाठकों से पशु बचाव प्रयासों में मदद करने की अपील साझा की।
कुछ हफ्तों बाद, यह ब्लॉग वायरल हो गया। रेस्क्यू सेंटर में दान की बाढ़ आ गई, और विजय का इनबॉक्स ऐसे लोगों के संदेशों से भर गया जो ऐसी ही कार्रवाई करने के लिए प्रेरित हुए थे।
मदारी, जो अब एक एनजीओ की मदद से संसाधन जुटा चुका था, ने एक छोटा चाय का स्टॉल शुरू किया और विजय को एक पत्र लिखा, उसे नई राह दिखाने के लिए धन्यवाद देते हुए।
विजय मुस्कुराया जब उसने वह पत्र पढ़ा। उसका कैमरा उसके पास रखा था। अब यह सिर्फ तस्वीरें खींचने का साधन नहीं था, बल्कि बदलाव का एक जरिया बन गया था। अपनी लेंस के माध्यम से, उसने न केवल बंदर की कहानी दुनिया को बताई, बल्कि उसके भविष्य को भी बदल दिया—एक ऐसा भविष्य, जहां आज़ादी अब दूर का सपना नहीं, बल्कि जीती-जागती हकीकत थी।
What a fantastic manifestation of vija y madan ji.How beautifully you have conveyed the message of not to be cruel to animals Once cruelty is at at its peak even the animals also revolt a d express anger.
ReplyDelete